Friday, August 25, 2023

भारत में पत्रकारिता की शुरुआत

पत्रकारिता

अब से लगभग 250 वर्ष पहले जब व्यापारी से शासक बनी ईस्ट इंडिया कंपनी के एक मुलाजिम विलियम बोल्ट्स ने यह एलान किया- "मेरे पास ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो मुझे कहना है और जिनका सम्बन्ध हर व्यक्ति से है", तब वह भारत में आधुनिक पत्रकारिता की नींव रख रहा था। 

यह बात अलग है कि विलियम बोल्ट्स की समाचारपत्र के प्रकाशन की इच्छा पूरी नहीं हो सकी, क्योंकि कंपनी ने उसे बलात् यूरोप वापस भेज दिया। इसके चार साल बाद 29 जनवरी, 1780 को ईस्ट इंडिया कंपनी के ही दूसरे मुलाजिम जेम्स आगस्टस हिकी ने 'द बंगाल गजट आर केलकटा जनरल एडवरटाइजर' नाम का साप्ताहिक समाचारपत्र प्रकाशित कर भारत में पत्रकारिता के सूत्रपात का श्रेय प्राप्त किया।

हिकी के गजट ने जब ईस्ट इंडिया कंपनी के आला अफसरों की दुर्नीतियों और भ्रष्टाचार के पर्दाफाश का बीड़ा उठाया, तब उसे भी प्रताड़ना का शिकार बनाया गया और अंततः भारत छोड़ना पड़ा।

इन दोनों घटनाओं का पत्रकारिता के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। अव्वल तो यह कि जनता के सरोकारों की बात करना सत्ता प्रतिष्ठान को कभी रास नहीं आता। दूसरे, सत्ताधीशों की काली करतूतों का जो भी पर्दाफाश करेगा उसकी राह में कदम-कदम पर कांटे बिछाने, उसको बरबाद करने में, मदान्ध सत्ता कतई संकोच नहीं करती। तीसरी बात यह कि खतरे उठाकर भी पत्रकारिता दुर्नीतियों और दुराचरण का पर्दाफाश करने से खुद को रोक नहीं सकती। संभवतः पत्रकारिता के गुणधर्म की यही व्यावहारिक परिभाषा है और जब भी पत्रकारिता इस मार्ग से विपथगामिनी होने की चेष्टा करती है उसकी सार्थकता और विश्वसनीयता संकट में फँस जाती है।

30 मई, 1826 को, जब कोलकाता से युगल किशोर शुक्ल ने हिन्दी का पहला साप्ताहिक पत्र 'उदन्त मार्त्तण्ड' प्रकाशित किया, तब प्रवेशांक में उद्घोषणा थी- "हिंदुस्तानियों के हित के हेतु अर्थात समाचारपत्र का प्रकाशन सत्ता से लेकर व्यापार तक किसी वर्ग विशेष के हितों की पैरवी अथवा संरक्षण के लिए नहीं होता, बल्कि उसका प्राण तत्व सामाजिक सरोकार होते हैं। इसी के साथ हिन्दी पत्रकारिता की यह रेस चालू हुई।



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