ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विदनम् ॥१॥
મંત્રા : આ સૃષ્ટિમાં જે કઈ દૃશ્યમાન છે તે મધામાં પરમાત્મા વસીને રહેલા છે. તેણે [તને આપેલા પદાર્થોં વડે ભાગ ભગવ. કાઈ અન્યના ધનની ઇચ્છા કરીશ નહિ. (૧)
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
ई श अव अस्यम ई (दं)दम सर्वम यत किंच जगत् य अम (अं) जगते?
बड़ा रूप (भगवान शंकर का) हमारा (ही) अवधारणा वाला जिस बल से (द किसीने कहा हे, इच्छा से वह ) यहाँ जगत में हे, वह अं रूप में कहां हे?
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विदनम् ॥१॥
ते न त्य क्त (इं) ईन, भ ऊं ज ईथा, मा गृद्ध: कस्य स्व इ द नम:??
वह हमारा नित्य बहता तेजोमय ज्ञानरूप (इन) भ कार वाला बड़ा ऊ कार युक्त हे ही, वह थ कार रूप, जो म कार से अ कार हे, जो ग कार से रूद्ध हे, वह हमारा खुदकी इच्छा वाले हमारे द को प्रणाम केसे करे??
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