Thursday, September 28, 2023

योगवासिष्ठ पुस्तक क्या हे?

योगवासिष्ठ पुस्तक क्या हे?
योगवासिष्ठ संस्कृत सहित्य में अद्वैत वेदान्त का अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ऋषि वशिष्ठ भगवान राम को निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान देते हैं। 

विद्वत्जनों के अनुसार सुख और दुख, जरा और मृत्यु, जीवन और जगत, जड़ और चेतन, लोक और परलोक, बंधन और मोक्ष, ब्रह्म और जीव, आत्मा और परमात्मा, आत्मज्ञान और अज्ञान, सत् और असत्, मन और इंद्रियाँ, धारणा और वासना आदि विषयों पर कदाचित् ही कोई ग्रंथ हो जिसमें 'योग वासिष्ठ' की अपेक्षा अधिक गंभीर चिंतन तथा सूक्ष्म विश्लेषण हुआ हो।

श्लोकों की संख्या २७६८७ है। 

वाल्मीकि रामायण से लगभग चार हजार अधिक श्लोक होने के कारण इसका 'महारामायण' अभिधान सर्वथा सार्थक है।

योगवासिष्ठ ग्रन्थ छः प्रकरणों में पूर्ण है। 
वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग),
मुमुक्षु व्यव्हार प्रकरण (२० सर्ग), 
उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग), 
स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग),
उपशम प्रकरण (९३ सर्ग) तथा
निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग),

लेकिन अब मेरे मन: मगज मस्तिष्क की विचारकधारा से कुछ शब्द ऊर्जा रूपी पूर्वधारणा कृपाबुद्धि से...

मृत्यु पर्यन्त मानुष स्वर्ग लोक, गोलोक, वैकुंठ आदि में जाते हुए सूचन है। वसिष्ठ ऋषि और विश्वामित्र की कामधेनु गैया यानी गाय के बारेमे उचित वार्ता हे। वेद भी नवग्व दशग्न या दशग्व के बारेमे उचित प्रकाश देते है। यहां प्रावधान यो ग वा सि ष्ठ में वशिष्ठ नहीं हे। शब्द भेद अनन्य हे।

योग से वास और इष्ठ प्रकृति से जुड़े रहने की बात यानी योगवासिष्ठ।

गोलोक की ग्वाक्ष से बाहर निकलते ही ॐ कार युक्त यजन से अपनी प्रचेता को जुड़ा देना और खुदको उ ओर म कार से अलग, अ कार युक्त हो कर, ओ कार बनने की तरफ सिर्फ एक वास पसंद करके (जैन धर्म का आयंबिल अच्छा है) वही वास युक्त बनके ट कार युक्त मनुष्य को शिष्ठ समझ वाला बनाना। जिससे वह र कार युक्त हो कर अपनी मनुष्य की मूलाधार एवम रं कुंडलिनी प्रभुत्व तरफ आगे दिशावान हो सके।

राम ने अपने भाइयों के साथ स्थूल, सूक्ष्म और कारण श्रीईरका ज्ञान वसिष्ठ जी के आश्रम में ही लिया, बादमें शस्त्र विद्या विश्वामित्रजीने और अगस्त्य ऋषि ने सिखाई। रामायण में आखिरी बात,  रावण वध नहीं, बल्की लवणासुर वध हे, जो शत्रुघ्ण ने किया। लवण यानी शरीर के क्षार युक्त कचरा जो वृषण में आकर्षण से प्रदिप्त होता हे जिसे मधु विद्या भी कहते है।

त्रिगुण अवस्था से द्विगुण, द्विगुण से सगुण, सगुण से निर्गुण ब्रह्म उपासना का मापदंड सिर्फ चित्रगुप्त ही देते है।

Happy Moments 
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद
Jigaram Jaigishya is a jigar:
જીગર ગૌરાંગભાઈ મહેતાના પ્રણામ

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